Saturday 12 April 2014

VAARTAALAP YA EKAA LAAP?

                

                                 वार्तालाप  या  एकालाप ?

 --------------------------------------------------रचना-डा। आर  सुमन  लता

  बज उठी  फोन   की  घण्टी 
छिन  गयी  सदियोँ  से  आ  रही चिट्ठी 
फिर  भी  बुरा  न  लगा ;
अपनों  का  स्वर प्रिय  लगा !
`"इण्टरनेट '' ने  घोंटा  इस  घण्टी  का  गला 
नव  संस्कृति  ने हमेँ  छोड़  दिया  अकेला !
बंद  कमरे  में   खुलती  हैं मशीनी  खिड़कियाँ 
न  होंठ  हिलते  हैं ,न  निकलती  हैं  ध्वनियाँ 
चलती  हैं  केवल  उंगलियाँ !
हाव - भावों  का  मशीनी  आधार ,
चारोँ  ओर  नीरसता  का  संचार !
प्रकृति  का  मानवीकरण  
और  सरसता  का साधारणीकरण 
लगे  अब  असाधारण !
क्योंकि  हो गया  है 
मनुष्यों का मशीनीकरण ,
आगे  बढ़ते वाद -विवाद -  संवाद ,
जुड़ते  नए  सम्बन्धों  को  साधुवाद !
नव  संस्कृति  का  यह  वार्तालाप 
क्या  लगता  नहीं  एकालाप ?

No comments:

Post a Comment