वार्तालाप या एकालाप ?
--------------------------------------------------रचना-डा। आर सुमन लता
बज उठी फोन की घण्टी
छिन गयी सदियोँ से आ रही चिट्ठी
फिर भी बुरा न लगा ;
अपनों का स्वर प्रिय लगा !
`"इण्टरनेट '' ने घोंटा इस घण्टी का गला
नव संस्कृति ने हमेँ छोड़ दिया अकेला !
बंद कमरे में खुलती हैं मशीनी खिड़कियाँ
न होंठ हिलते हैं ,न निकलती हैं ध्वनियाँ
चलती हैं केवल उंगलियाँ !
हाव - भावों का मशीनी आधार ,
चारोँ ओर नीरसता का संचार !
प्रकृति का मानवीकरण
और सरसता का साधारणीकरण
लगे अब असाधारण !
क्योंकि हो गया है
मनुष्यों का मशीनीकरण ,
आगे बढ़ते वाद -विवाद - संवाद ,
जुड़ते नए सम्बन्धों को साधुवाद !
नव संस्कृति का यह वार्तालाप
क्या लगता नहीं एकालाप ?